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यह प्रेरक कहानी एक जिज्ञासु युवक अमर की है, जो भगवान बुद्ध से मानव जीवन का मूल्य जानना चाहता है। बुद्ध उसे एक चमकदार पत्थर देकर बाजार में उसकी कीमत पता करने को कहते हैं, लेकिन बेचने से मना करते हैं। बाजार में फलवाला, सब्जीवाला, सुनार और जौहरी पत्थर की अलग-अलग कीमत लगाते हैं, जो उनकी अपनी समझ पर निर्भर करती है। बुद्ध बताते हैं कि ठीक उसी तरह मानव जीवन का मूल्य भी दूसरों की नज़रों में उनकी समझ और हैसियत के अनुसार बदलता है। यह कहानी सिखाती है कि हमें अपनी असली कीमत खुद पहचाननी चाहिए और दूसरों की राय से प्रभावित हुए बिना आत्मविश्वास के साथ जीना चाहिए।
कहानी: अपनी कीमत पहचानो
एक छोटे से गाँव में, जहाँ हर तरफ शांति और सादगी का आलम था, एक जिज्ञासु युवक रहता था, जिसका नाम था अमर। अमर का मन हमेशा गहरे सवालों में उलझा रहता था। एक दिन वह भगवान बुद्ध के पास पहुँचा, जो गाँव के बरगद के पेड़ के नीचे अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे थे।
“बुद्ध जी,” अमर ने हाथ जोड़कर पूछा, “जीवन का असली मूल्य क्या है? हम इंसानों की कीमत क्या है?”
बुद्ध ने उसकी ओर देखकर मुस्कुराया और अपनी झोली से एक चमकदार पत्थर निकाला। पत्थर इतना सुंदर था कि उसकी चमक से अमर की आँखें चौंधिया गईं। बुद्ध ने कहा, “अमर, इस पत्थर को ले जाओ और बाजार में इसका मूल्य पता करो। लेकिन याद रखना, इसे बेचना नहीं है, सिर्फ़ कीमत पूछनी है।”
अमर ने पत्थर लिया और उत्साह से बाजार की ओर चल पड़ा। सबसे पहले वह एक फल बेचने वाले रामू काका के पास रुका। “काका, इस पत्थर की कीमत बताओ!” अमर ने चमकता पत्थर दिखाते हुए कहा।
रामू काका ने पत्थर को गौर से देखा और बोले, “अरे, ये तो बड़ा चमकीला पत्थर है! इसे दे दे, मैं तुझे एक दर्जन संतरे दूँगा।”
अमर ने मुस्कुराकर मना किया और आगे बढ़ गया। उसकी अगली मुलाकात एक सब्जी बेचने वाली लक्ष्मी बाई से हुई। “बाई, इस पत्थर की कीमत क्या लगाओगी?” अमर ने पूछा।
लक्ष्मी बाई ने पत्थर को उलट-पलट कर देखा और बोली, “हम्म, ये तो अच्छा-खासा पत्थर है। इसे मेरे पास छोड़ दे, मैं तुझे एक बोरी ताज़े आलू दे दूँगी!”
अमर ने फिर मना किया और बाजार के सुनार मोहनलाल की दुकान पर पहुँचा। “मोहनलाल जी, इस पत्थर का मूल्य बताइए,” उसने पत्थर को सुनार के सामने रखते हुए कहा।
मोहनलाल ने अपनी चश्मा ठीक किया, पत्थर को ध्यान से देखा और आश्चर्य से बोला, “अरे, ये तो कोई साधारण पत्थर नहीं! इसे 50 लाख में बेच दे।” अमर ने मना किया तो सुनार ने उत्साह में कहा, “ठीक है, 2 करोड़ दे दूँगा! और बता, कितना चाहिए? जो माँगेगा, दूँगा!”
“नहीं, मोहनलाल जी, मेरे गुरु ने इसे बेचने से मना किया है,” अमर ने विनम्रता से कहा और आगे बढ़ गया।
अब वह गाँव के मशहूर जौहरी सेठ विश्वनाथ के पास पहुँचा। सेठ जी ने जैसे ही पत्थर देखा, उनकी आँखें चमक उठीं। “ये... ये तो अनमोल रूबी है!” सेठ ने उत्साह से कहा। उन्होंने तुरंत एक लाल रेशमी कपड़ा बिछाया, पत्थर को उस पर रखा, और उसकी परिक्रमा करते हुए माथा टेका।
“बेटा, ये रूबी कहाँ से लाया?” सेठ ने पूछा। “इसकी कीमत तो पूरी दुनिया बेचकर भी नहीं चुकाई जा सकती! ये तो बेशकीमती है, इसका कोई मोल ही नहीं!”
अमर हैरान-परेशान बुद्ध के पास लौट आया। उसने सारी बात बताई और बोला, “बुद्ध जी, अब तो समझ नहीं आ रहा! कोई इस पत्थर की कीमत 12 संतरे बता रहा है, कोई एक बोरी आलू, कोई 2 करोड़, और कोई इसे बेशकीमती कह रहा है। आखिर इसकी असली कीमत क्या है? और मानव जीवन का मूल्य क्या है?”
बुद्ध ने शांत स्वर में कहा, “अमर, तूने जो देखा, वही जवाब है। फलवाले ने पत्थर को संतरों की नज़र से देखा, सब्जीवाले ने आलू की बोरी की नज़र से, सुनार ने अपनी दुकान की हैसियत से, और जौहरी ने अपनी समझ और अनुभव से। ठीक यही बात मानव जीवन के साथ है। तू एक अनमोल हीरा है, लेकिन तेरी कीमत लोग अपनी समझ, अपनी औकात और अपनी सोच के हिसाब से लगाएँगे। कोई तुझे सस्ता समझेगा, कोई बेशकीमती। मगर तुझे अपनी असली कीमत खुद पहचाननी है। दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जो तेरे मूल्य को समझेंगे। बस, धैर्य रख और अपनी कीमत को कभी कम मत आँक!”
अमर की आँखें चमक उठीं। उसने बुद्ध को प्रणाम किया और मन ही मन ठान लिया कि वह अपनी कीमत को हमेशा पहचानेगा। उस दिन से अमर ने हर काम में आत्मविश्वास और सम्मान के साथ कदम बढ़ाया। गाँव में उसकी कहानी फैल गई, और लोग उसे “हीरा अमर” कहने लगे।
इस कहानी से सीख
अपनी कीमत खुद पहचानें: आपका मूल्य दुनिया की नज़रों से नहीं, बल्कि आपकी अपनी समझ और आत्मविश्वास से तय होता है।
दूसरों की राय से न डरें: लोग आपकी कीमत अपनी सीमित समझ के आधार पर लगाएँगे, लेकिन आपको अपनी ताकत पर भरोसा रखना है।
धैर्य और आत्मविश्वास: दुनिया में ऐसे लोग ज़रूर मिलेंगे जो आपके मूल्य को समझेंगे, बस धैर्य रखें।
अनमोल हैं आप: हर इंसान एक अनमोल रत्न है, बस उसे अपनी चमक को पहचानने की ज़रूरत है।
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